गंगा दशहरा 2025: प्रयागराज में आस्था और भक्ति का अद्भुत संगम
प्रयागराज में गंगा स्नान और दान-पुण्य की महिमा

प्रयागराज: गंगा दशहरा के पावन अवसर पर, पुण्यसलिला माँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम तट पर आस्था का एक विराट जनसैलाब उमड़ पड़ा। प्रयागराज की धरती आज श्रद्धा और भक्ति के उस अद्भुत संगम की साक्षी बनी, जहाँ भारत के कोने-कोने से आए असंख्य श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर अपने तन-मन को पवित्र किया और अक्षय पुण्य लाभ कमाया।
यह पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, विशेषतः इसलिए क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आज ही के दिन राजा भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मोक्षदायिनी माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई थीं। उनका पृथ्वी पर आगमन न केवल जल का स्रोत बना, बल्कि मानव जाति के लिए पापों से मुक्ति और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त किया। इसी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में गंगा दशहरा मनाया जाता है, और प्रयागराज जैसा तीर्थराज स्थल इस पर्व के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
आज के दिन की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय से बहुत पहले ही हो गई थी। प्रयागराज के सभी प्रमुख गंगा घाटों, विशेष रूप से संगम नोज पर, भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी। घाटों पर तिल धरने की जगह नहीं थी। हर तरफ 'हर हर गंगे' और 'जय माँ गंगे' के जयकारे गूंज रहे थे, जो पूरे वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा भर रहे थे। सर्द सुबह की परवाह न करते हुए, लाखों श्रद्धालुओं ने पवित्र जल में डुबकी लगाई। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी ने गंगा मैया की गोद में डुबकी लगाकर अपने जीवन को धन्य माना। स्नान केवल शारीरिक शुद्धि नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक था। जल में डुबकी लगाते ही मानो सारे कष्ट, चिंताएं और पाप धुल जाते हों, और एक नई ऊर्जा का संचार होता हो।
स्नान के पश्चात, भक्तों ने माँ गंगा की प्रतिमाओं और जल की पूजा-अर्चना की। उन्होंने पुष्प, दीप, नैवेद्य अर्पित किए और सुख-समृद्धि तथा कल्याण की प्रार्थना की। इस अवसर पर दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया गया। श्रद्धालुओं ने अपनी सामर्थ्य अनुसार वस्त्र, अन्न, धन, और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान कर पुण्य कमाया। कई भक्तों ने विशिष्ट संकल्प लिए, जैसे कि बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए या अन्नदान के द्वारा किसी भूखे का पेट भरने का। इन संकल्पों ने पर्व को केवल धार्मिक कृत्य तक सीमित न रखकर सामाजिक सार्थकता भी प्रदान की।
मंत्रों के उच्चारण और गंगा मैया की आरती की गूंज ने पूरे क्षेत्र को भक्तिमय बना दिया था। दीपों की जगमगाहट के बीच, भक्तों ने अपने गोत्र का नाम लेकर माँ गंगा से अपने परिवार की कुशलता, सुख-समृद्धि और भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया। यह अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके उद्धार के लिए प्रार्थना करने का भी एक महत्वपूर्ण क्षण था। श्रद्धालुओं ने व्यक्तिगत प्रार्थनाओं के साथ-साथ देश और समाज की उन्नति, शांति और समृद्धि के लिए भी माँ गंगा से सामूहिक प्रार्थनाएं कीं।
प्रयागराज के स्थानीय निवासियों ने उत्साहपूर्वक बाहर से आए भक्तों का स्वागत किया। दूर-दराज के क्षेत्रों से कठिन यात्रा तय करके संगम पहुंचे इन श्रद्धालुओं के चेहरों पर एक अद्भुत संतोष और आनंद का भाव स्पष्ट झलक रहा था। गंगा मैया के दर्शन और स्नान ने उनकी सारी थकान मिटा दी थी। इस पवित्र भूमि पर आकर उन्होंने न केवल धार्मिक कृत्यों को पूरा किया, बल्कि एक गहरी आंतरिक शांति और परमात्मा से जुड़ाव का अनुभव भी किया। गंगा के महत्व और महिमा का बखान करते हुए, भक्तों ने एक स्वर में माँ गंगा को पापों का नाश करने वाली, जीवनदायिनी और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली देवी बताया।
कुल मिलाकर, गंगा दशहरा का यह पावन पर्व प्रयागराज के संगम तट पर भक्ति, आस्था, उल्लास और पवित्रता के एक अप्रतिम वातावरण में संपन्न हुआ। सुबह से शाम तक घाटों पर भक्तों की भीड़ बनी रही, मंत्रोच्चार गूंजते रहे और दान-पुण्य का सिलसिला अविराम चलता रहा। प्रत्येक गतिविधि माँ गंगा के प्रति अटूट श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक थी। जैसा कि हमने कई श्रद्धालुओं से बातचीत कर उनकी भावनाओं को जाना, सभी का हृदय माँ गंगा के प्रति कृतज्ञता और प्रेम से भरा हुआ था।
अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए, गोपाल जी संगम ने इस पर्व की महत्ता को रेखांकित किया: "आज बहुत ही विशेष पर्व है, यह गंगा जी का पर्व है और गंगा मैया की महिमा का मैं जितना बखान करूँ उतना कम है। माँ गंगा तो साक्षात् मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। इस पावन दिन पर प्रयागराज आकर स्नान करने का सौभाग्य मिलना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है। जय महाराज प्रयागराज! जय गंगा मैया!"